बुधवार, 29 सितंबर 2010

लम्हे

मोड़ पर खड़े लम्हे
याद दिलाते हैं
कि
उनकी उपेक्छा कर
हमने की थीं छोटी या बड़ी गलती

ये लम्हे खुद को पहचनवाने की कोशिश
में खड़े हैं
और हम हैं कि उन्हें भूलने में लगे हैं

दरअसल हम डरते हैं
कि
उन लम्हों में हम फिर वो भूल दोहरा न दें

- वाणभट्ट

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

यूं ही लिख रहा हूँ...आपकी प्रतिक्रियाएं मिलें तो लिखने का मकसद मिल जाये...आपके शब्द हौसला देते हैं...विचारों से अवश्य अवगत कराएं...

ऑर्गेनिक जीवन

मेडिकल साइंस का और कुछ लाभ हुआ हो न हुआ हो, आदमी का इलाज जन्म के पहले से शुरू होता है और जन्म के बाद मरने तक चलता रहता है. तुर्रा ये है कि म...